राजस्थान की राजनीति में नागौर का मिर्धा परिवार हमेशा से एक अहम कड़ी रहा है।
नागौर के जाटलैंड में मिर्धा परिवार कभी कांग्रेस का भरोसेमंद और मजबूत गढ़ माना जाता था,अब फिर से कांग्रेस पार्टी में लौट रहा है।
हाल ही में कुचेरा नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष तेजपाल मिर्धा की कांग्रेस में घर वापसी के बाद सियासी हलकों में हलचल मच गई है।अब चर्चा यह है कि क्या यह वापसी महज एक रणनीतिक कदम है या फिर हनुमान बेनीवाल के साथ पुराने गठबंधन की कड़वाहट मिटाने की कोशिश?
बड़ा सवाल यह भी है कि क्या तेजपाल मिर्धा ने डोटासरा के इशारे पर कांग्रेस से इस्तीफा दिया था?
डोटासरा से मुलाकात और सोशल मीडिया पर चर्चा
तेजपाल मिर्धा ने हाल ही में अपने फेसबुक पेज पर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से मुलाकात की तस्वीर साझा की।
उन्होंने लिखा “आज डोटासरा जी से मुलाकात की। आगामी पंचायत व निकाय चुनाव और नागौर जिला कांग्रेस संगठन से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। डोटासरा जी का मार्गदर्शन सदैव प्रेरणादायी रहा है।”
यह पोस्ट सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी और इसके साथ ही पुरानी सियासी यादें ताजा हो गईं।
गठबंधन से नाराज़गी और बगावत
अप्रैल 2024 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नागौर की सियासत में भूचाल आया था।
इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस ने नागौर सीट आरएलपी के नेता हनुमान बेनीवाल को दे दी थी।
इससे नाराज़ होकर मिर्धा परिवार के दिग्गज नेताओं ने बगावत कर दी और तेजपाल मिर्धा समेत कई सदस्यों ने कांग्रेस से सामूहिक इस्तीफा दे दिया।
कुचेरा नगर पालिका के 21 पार्षदों, 8 पूर्व पार्षदों और 7 पंचायत समिति सदस्यों ने भी तेजपाल के साथ त्यागपत्र सौंपा।
इसके बाद कांग्रेस ने जवाबी कार्रवाई में तेजपाल समेत तीन नेताओं को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था।
बेनीवाल से टकराव और परिवार में दरार
यह बगावत हनुमान बेनीवाल के खिलाफ थी, जिन्हें मिर्धा परिवार अपना पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी मानता है।
2023 के विधानसभा चुनाव में तेजपाल ने बेनीवाल के खिलाफ खींवसर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए थे।
गठबंधन के फैसले ने परिवार को यह महसूस कराया कि पार्टी ने उनकी सीट छीन ली है।
नागौर के जाटलैंड में मिर्धा परिवार का प्रभाव हमेशा से रहा है,नाथूराम मिर्धा से लेकर ज्योति मिर्धा तक, यह परिवार कांग्रेस की पहचान रहा है,
लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ज्योति मिर्धा के बीजेपी में शामिल होने से परिवार दो हिस्सों में बंट गया।
एक ओर रिछपाल मिर्धा जैसे नेता बीजेपी के साथ चले गए, वहीं तेजपाल ने बगावत का रास्ता चुना।
चुनाव के दौरान हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा समर्थकों के बीच झड़प में तेजपाल मिर्धा घायल भी हुए थे।
यह घटना परिवार की नाराज़गी और दरार को उजागर करती है।
डोटासरा की रणनीति और गठबंधन की दूरी
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा खुद भी बेनीवाल के साथ गठबंधन से सहज नहीं थे।
चुनाव के दौरान उन्होंने कई बार बेनीवाल की आक्रामक शैली पर अप्रत्यक्ष टिप्पणियां कीं,
खींवसर उपचुनाव में कांग्रेस ने गठबंधन तोड़ते हुए अपना उम्मीदवार उतार दिया,
जिससे यह संकेत मिला कि पार्टी अंदरखाने में बेनीवाल से दूरी बना रही है।
बेनीवाल ने भी इसका जवाब देते हुए कहा था “कांग्रेस ने गठबंधन तोड़ा है, अब हम अकेले लड़ेंगे।”
कांग्रेस में वापसी और नया समीकरण
तेजपाल मिर्धा की कांग्रेस में वापसी का औपचारिक ऐलान 25 सितंबर 2025 को हुआ, पीसीसी ने उनका निष्कासन रद्द कर दिया।
हालांकि एक इंटरव्यू में तेजपाल ने कहा “मैं कांग्रेस में हूं, लेकिन खींवसर में डबल इंजन सरकार विकास कर रही है।”
तेजपाल का यह बयान बीजेपी की तारीफ के रूप में देखा गया,
जिससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि वापसी सशर्त हो सकती है।
कुछ दिन पहले ही डोटासरा ने तेजपाल के विरोधी गुट के दो नेताओं को भी कांग्रेस में शामिल कराया था, जो परिवार के अंदरूनी मतभेद को दर्शाता है।
पंचायत चुनावों से पहले संगठन मजबूत करने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह वापसी आगामी पंचायत और निकाय चुनावों को ध्यान में रखकर की गई है।
नागौर में जाट वोटों के बंटवारे से कांग्रेस को नुकसान हो रहा था।
डोटासरा ने मिर्धा परिवार को वापस लाकर संगठन को मजबूत करने की कोशिश की है।
कुछ सूत्रों का कहना है कि तेजपाल का पिछला इस्तीफा भी डोटासरा की रणनीति का हिस्सा था,
ताकि गठबंधन टूटने के बाद परिवार को दोबारा से जोड़ा जा सके।