राजस्थान में छात्र संघ चुनाव कराए जाने की मांग को लेकर छात्र नेता अब अपने-अपने तरीकों से विरोध दर्ज करा रहे हैं। भूख हड़ताल पर बैठे छात्र नेताओं ने उच्च शिक्षा मंत्री और कुलपति की शव यात्रा निकालकर कुलपति आवास के बाहर दाह संस्कार कर विरोध की अपनी आवाज़ को बहरी सरकार के कानों तक पहुंचाई। वहीं इनमें से दो छात्र पुलिस को चकमा देकर कुलपति आवास के अंदर जा घुसे, जिन्हें बलपूर्वक बाहर निकाला गया। वहीं दूसरी तरफ, एक अन्य छात्र नेता ने मुख्यमंत्री के नाम खून से पत्र लिखकर छात्रसंघ चुनाव कराने की मांग की। इससे पहले भी एक छात्र ने अपने विरोध प्रदर्शन के तरीके से चौंका दिया जब वो छात्र नेता अपने साथ पेट्रोल से भरी बोतल लेकर कुलपति सचिवालय में भी दाखिल हुआ।
बता दें कि इस साल के आखिर में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन ठीक इससे पहले अगस्त में होने वाले छात्र संघ चुनाव पर सरकार ने रोक लगा दी। जिसके बाद से छात्र नेता राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ लगातार आंदोलन कर अपना विरोध प्रदर्शन दर्ज करा रहे हैं। यदि छात्र नेताओं की मानी जाएं तो मुख्यमंत्री खुद छात्र राजनीति से बढ़कर आज मुख्यमंत्री बने हैं। बावजूद इसके वे आज राजनीति की पहली सीढ़ी तोड़ने में लगे हुए हैं। इसके चलते अब छात्रों का विरोध प्रदर्शन तेज होता जा रहा है। रविवार से भूख हड़ताल पर बैठे छात्र नेताओं में से आधे से ज्यादा अस्पताल पहुंच चुके हैं। बचे हुए छात्र नेताओं ने अपने समर्थकों के साथ बुधवार को उच्च शिक्षा मंत्री और कुलपति की शव यात्रा निकाल कर अपना विरोध दर्ज कराया और इसके बाद कुलपति आवास के बाहर ही प्रतीकात्मक दाह संस्कार भी किया।
उन्होंने कहा कि प्रदेश का छात्र आक्रोशित है। छात्र भूख हड़ताल कर रहे हैं, पानी की टंकी पर चढ़ रहे हैं, उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है, लेकिन प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। इसलिए उन्हें दर्शाना चाहते हैं कि जब वह छात्रों की सुध नहीं ले रहे तो छात्रों के लिए वो भी मरे समान हैं। उन्होंने कहा कि छात्र कब तक गांधीवादी तरीके से अपनी डिमांड रखेगा अब वो धीरे-धीरे भगत सिंह की भूमिका में आ रहा है। मुख्यमंत्री ने संवेदनशीलता का परिचय नहीं दिया और उच्च शिक्षा मंत्री को यह तक नहीं पता कि छात्रों की मांग क्या है। जहां विश्वविद्यालय के कुलपति लापता हैं।
वहीं एबीवीपी के छात्र नेता देव पलसानिया ने मुख्यमंत्री के नाम खून से पत्र लिखकर छात्र संघ चुनाव कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री से हम यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि जो छात्र संघ चुनाव नहीं करने का काला फैसला उन्होंने लिया है, उसे वापस ले। जो छात्रनेता छात्र हितों में 365 दिन यूनिवर्सिटी कैंपस में रहकर संघर्ष करते हैं। उनके हकों को दबाने का काम ना करें। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि राजस्थान की छात्र शक्ति सड़कों पर उतरेगी, उसके जिम्मेदार मुख्यमंत्री खुद होंगे।
आपको बता दें कि 2003 से लेकर अब तक के विधानसभा चुनावी वर्ष में हुए छात्र संघ चुनाव के आंकड़ों को टटोले तो एबीवीपी या निर्दलीय छात्र नेताओं का ही वर्चस्व रहा है। 2003 में एबीवीपी के जितेंद्र मीणा अध्यक्ष बने थे। 2008 में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए, 2013 में एबीवीपी के कानाराम जाट अध्यक्ष बने और 2018 में निर्दलीय विनोद जाखड़ ने अपना परचम फहराया था। ऐसे में विश्वविद्यालय की गलियारों में चर्चा है कि 2023 में गहलोत सरकार इसी वजह से छात्र संघ चुनाव कराने से बच रही है।