रामायण मानवता के कल्याण के लिए सबसे बड़ा ग्रंथ है, जो मानव जाति के लिए संविधान है। विश्व के किसी भी धर्म, संप्रदाय, पंथ, परंपरा, राष्ट्र और साहित्य के पास रामायण जैसा ग्रंथ नहीं है। यह सभी भारतीयों का सौभाग्य है कि वे रामायण को मानते हैं और दूसरों से भी इसे मानने का आग्रह करते हैं। यह बात शनिवार को संस्कृत संस्कृति विकास संस्थान द्वारा आयोजित व्याख्यान समारोह में जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन विभागाध्यक्ष शास्त्री कोसलेन्द्रदास ने प्रमुख वक्ता के रूप में कही।
उन्होंने कहा कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण तिथि है नवमी, जिस दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र में नवमी को मध्याह्न में अयोध्या में तब हुआ था, जब चंद्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में थे। चंद्र और बृहस्पति दोनों समन्वित थे। पांच ग्रह अपनी उच्च अवस्था में थे। लग्न कर्क था और सूर्य मेष राशि में थे। उन्होंने कहा कि रामनवमी का व्रत सभी को करना चाहिए, क्योंकि यह सांसारिक आनंद और मुक्ति के लिए है। जो व्यक्ति जीवन में एक बार भी रामनवमी का व्रत करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और पाप कट जाते हैं। इस दिन भगवान श्रीराम की पूजा करते हुए 13 अक्षर का विजय मंत्र ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जाप करना अत्यंत लाभकारी है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो. अमिता पांडेय, लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने भगवान श्रीराम के आदर्शों को जीवन में उतारने की आवश्यकता पर जोर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. मीरा द्विवेदी, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय ने की। संयोजक डॉ. मोनिका मिश्रा ने समारोह की जानकारी दी और उपस्थित सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों और संस्कृत प्रेमियों ने भाग लिया और श्रीराम के जीवन तथा उनके अद्वितीय आदर्शों से प्रेरणा ली।